पुर - उम्मीद
पुर - उम्मीद
अब न करिए याद उन भूली बिसरी बातों को
बैठिए तो ज़रा कुछ गम गलत करिए
सजी हैं यह महफिलें, इनके अंदाज खोखले
आइए दूर ज़रा अब गफलत करिए
वख्त बचा ही किसका मुलाकातों के लिए
फुरसत के वे पल कौन चुरा ले गया
होती थी मौसिकी भरी उन हवाओं में
साज़ उन फिजाओं से कोई चुरा ले गया
लपेटे तेज़ खंजरों को लफ्जों की चादर में
सरे आम तो यहां कत्ल होते रहते हैं
अक्स जिस्म पर कम दिखते हैं अक्सर
रूह के छाले अश्कों में बहते रहते हैं
है बेवफाई ने थामा हाथ अब जफा का
चेहरे हैं बदले -२, सीरतें भी मैली
बुझने लगी है लौ जलते दियों की
इस रक्स में रुख हवाओं ने भी बदली
मिलीं हैं सफर में चलो हमें खरोंचे ही सही
पर न कर गम हम जैसे हैं फिर भी जिंदा अभी
कहकहे जिनसे महफिलें सजती थीं अपनी
न था फरेब उनमें, थीं वे असली की असली
उठाइए जाम हाथों में और गले लगिए
इस शाम को ज़रा फिर से रंगीन बना दें
निकल आए हैं दूर बहुत यूं तो सफर में
बचे खुचे लम्हों को चलो फिर हसीन बना दें....