पत्र जो लिखा
पत्र जो लिखा
ये तुम ही हो
जो हर पल दस्तक देते हो
मेरे दिल में
हर उस गुलाबी शाम
मैं बुनती रहती सपने
और लिखती तुम्हें
भावपूर्ण खत
इस आशा में कि
तुम आओगे एक दिन
फिर अचानक
मैं पिघलती रही
हर पल
तुम्हारे प्रेम की ऊष्मा पाकर
तुम्हारा प्रेम
निश्चल था, सात्विक था
तभी तो एक दूसरे को
खोने के बाद भी
मेरी पाकीजा रूह
आज भी प्रतीक्षारत है
दुनिया का हर बंधन
सिर्फ जिस्मों के लिए है
यूं लगता है जैसे तुम स्वयं ही
अवसर की तलाश में होते हो कि
मैं तुम्हें पुकारूँ
ये तुम ही तो हो
जो हर पल दस्तक देते हो
मेरे दिल में
कितना सुकून देता है
तुम्हें लम्बे और भावपूर्ण
प्रेम के एहसासों भरे पत्र लिखना
जिन्हें कई -कई बार पढ़ना
फिर खुद ही रो लेना
और फिर उसके असंख्य
छोटे -छोटे टुकड़े कर
हवा के सुपुर्द कर देना
कितना अच्छा लगता है
यह सब
कभी -कभी
सुनो, आज भी मुझमें
प्रेम का ज्वार उमड़ा
मेरे यायावर दोस्त
मैंने तुम्हें प्यार का पैगाम देने
पत्र जो लिखा, मगर भेजा नहीं !

