पत्र जो लिखा मगर भेजा नहीं।
पत्र जो लिखा मगर भेजा नहीं।
प्यारे पिता जी
आप आज दुनिया में नहीं
लेकिन कुछ बातें थीं कहनी
जो रह गई अनकही
उन बातों का था बहुत बोझ
आज कर रहा हूं हल्का
आपको एक पत्र द्वारा
जिसका कोई न अता न पता
कहां भेजूं नहीं जानता
ये पत्र लिखा जा रहा
मालुम नहीं भेजा जाएगा।
आप बीमार हुए
जितनी क्षमता थी
वैसी चिकित्सा दी
आपके दिल में हुई तकलीफ़
शायद अगर बढ़िया उपचार होता
तो मैं आपको नहीं खोता
और आप आज होते ठीक-ठीक
मेरे संग उठते बैठते हर रोज।
परंतु ये सब तो एक है सोच
वक्त है बहुत निरंकुश
वो किसी को नहीं बख्शता
उसके आगे हर कोई रह जाता।
काश! वक्त मेरे हाथ होता
तो फिर मैं उस घड़ी को थाम लेता
और कभी आगे नहीं बढ़ने देता।
ऐसे ही हुआ माता जी के साथ
हमारे पास नहीं थे इतने साधन
वक्त था बहुत बलवान
उसने किया कुठाराघात
माता जी उसकी हुई शिकार
अब मैं हो गया अनाथ।
ये पत्र लिख रहा हूं
सिर्फ अपनी कुंठा निकालने के लिए
मालूम नहीं जा पाएगा
वहां का नहीं किसी को पता
लगता इंसान बहुत विवश
अगर साधनों से हो वंचित
तो फिर जीना बहुत मुश्किल।