पति परमेश्वर
पति परमेश्वर
मदिरा जो पीकर पिया घर आए, आकर मुझ पर हुक्म चलाए
क्रोध मे मैं पहले से बैठी थी, उतर गई सारी लठ दो लगाए।
जुआ, सट्टा, पत्ती खेल जाए, हार-हार कर रोज घर आए
घर का सामान सारा बेच दिया है, अब मेरी इज्जत दांव लगाए।
मान-सम्मान मैं उसका संवारु, जिसे बेचकर वो रोज आ जाए
किस-किस को समझाऊँ मैं जाकर, औरों की लुगाइयाँ छेड़ घर आए।
पति परमेश्वर कहती है दुनियाँ, ऐसे पति का करूँ क्या मैं हाय
किस जन्म का फल दिया, मेरे प्रभु, कैसे छोड़ूँ वो पति मेरा हाय।
मात-पिता को भी क्या दोष लगाऊँ, मेरी पसंद के पति मैंने पाए
इज्जत, आबरू मेरी दाँव लगी है, क्या करूँ मैं, कोई कुछ तो बताए।