प्रतीक्षा
प्रतीक्षा
वृद्ध दंपति का है परिवार हमारा
वर्षो का है सुंदर साथ हमारा
जीवन संध्या का आगाज़ हुआ है
विधि के विधान का आभास हुआ है
हर प्राणी का अंत निश्चित है
शरीर नश्वर है आत्मा अमर है
सोचा न था सुखमय जीवन में
ईश्वर के इस कटू सृजन का
प्रस्थान जग से दोनों का होगा
मन विचलित और दुखित हुआ है
प्रसंग से एक जिज्ञासा जागी है
हम दोनों में पहल कौन करेगा ?
चली गईं वह हमसे पहले
कौन सांत्वना हमको देगा
चले गए हम उनसे पहले
कौन सहारा उनको तब देगा
विधि का विधान अटल है
दोनों का प्रस्थान निश्चित है
पहल दोनों में कौन करेगा
उत्तर इसका अभी नहीं है
स्मरण आया विवाह मंडप का
प्रसन्नता की किरण थी जागी
विश्वास था पवित्र अनुष्ठान पर
समक्ष अग्नि को साक्षी मानकर
प्रार्थना दोनों ने निष्ठा से की थी
सात जन्मों तक साथ रहने की
जहां दोनों ने प्रतिज्ञा की थी
संकल्प एक और करते हैं
जो प्रथम प्रस्थान करेगा
क्षितिज पार प्रतीक्षारत होगा
संसार में जो रह जायेगा
अपना जीवन पूर्ण करेगा
वचन बद्ध अंतरिक्ष में मिलकर
समीक्षा इस जीवन की कर लेंगे
अगले जन्म में साथ रहेंगे
या अतिक्रमण कर दिशा बदलेंगे,
अनुबंध हुआ साथ रहने का
पुनर्जन्म फिर धरती पर लेंगे
रूप रंग चाहे बदला हो
एक दूजे को पहचान ही लेंगे
अनुष्ठान का प्रण कृतार्थ होने पर
नया अवतार स्वीकार कर लेंगे
पहुंचे जब दोनों पार क्षितिज के
पास खड़े थे पहचान न पाए
स्मरण आई ईश्वर की रचना
अनंत में काया नहीं होती
अदृश्य, निर्मूल आत्मा हैं होती
संबंधों की अभिव्यक्ति नहीं होती
न मिलने पर उन्माद होता है
दुख सुख क्रोध या अश्रु नहीं होते
पृथ्वी जैसी आकांक्षा नहीं होती
संसार जैसा व्यवहार नहीं होता
हताश हैं प्राभू तेरे विशाल सृजन में
जहां कभी हम मिल नहीं सकते
विकल्प नहीं है अतिरिक्त प्रार्थना के
पुनर्मिलन की अभिलाषा लेकर
तेरे आगार में प्रतीक्षा करते हैं
संकल्प हमारा साकार करा दे
अगले जन्म में हमें फिर मिल वादे
