प्रथम मिलन : लता की ओट से
प्रथम मिलन : लता की ओट से
🌸 प्रथम मिलन : लता की ओट से 🌸
(राम-सीता की प्रथम दृष्टि — सौंदर्य और भक्ति का अनंत संगम)
✍️ श्री हरि
25.7.2025
लता की ओट में छिपा हुआ चंद्रमा,
जैसे बादलों से झाँके चुपचाप,
वैसी ही सीता — सकुचाई, संकोच में,
नेत्रों में नवयौवन की दीपशिखा आप।
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उनके नयनों की स्याही में बसते थे,
कोमल स्वप्न — रति नहीं, भक्ति से रचे हुए,
और अधरों पर मौन की वह वंदना थी,
जो हृदय की गहराइयों से उठे हुए।
🌿
राम — करुणा के साकार मूर्तिरूप,
कमर में धनुष, चरणों में धरा का रूप।
नेत्रों से जैसे शांत सरोवर बहे,
और मुखमंडल पर सौम्यता बरसे अहे।
🌼
जब उनकी दृष्टि सीता पर पड़ी —
जैसे सुर्य अपनी ही छाया पर ठिठका खड़ा,
शब्द रुके, श्वास थमी, समय झुका,
प्रेम ने मर्यादा का कर लिया व्रत बड़ा।
🌸
राम ने देखा —
न वह केवल सुंदरी थी, वह तप की परिणीता थी,
लता के मध्य खड़ी एक पूजा की मूर्ति,
जिसकी हर अदा में आस्था बसी थी।
💓
सीता ने देखा —
न वह केवल पुरुष था, वह स्वप्न का स्वरूप था,
जिसकी चाल में धर्म था, जिसकी दृष्टि में तप।
जिसके दर्शन मात्र से सृष्टि हो जाए चप।
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नेत्रों का प्रथम आलिंगन हुआ,
हृदयों का पुलकित स्पंदन हुआ।
बिन बोले ही कथा बन गई,
जैसे वंशी बिना स्वर के भी गुनगुनाई।
🪔
सीता का मन राम में रम गया,
राम का चित्त सीता में स्थिर गया।
कोई आकर्षण नहीं — यह आत्मा की पुकार थी,
कोई प्रणय नहीं — यह पुनर्जन्म की रार थी।
🕊️
दृष्टि से दृष्टि की आरती हुई,
प्रणय ने मर्यादा में मूरत गढ़ी।
सृष्टि स्तब्ध थी, पवन रुक गया,
प्रभु राम का मन भी सीता पर झुक गया।
🌺
यह मिलन नहीं था केवल — यह पुनर्स्मरण था,
त्रेतायुग के मंच पर एक पुरानी ऋचा का नव-पाठ था।
जनकपुरी की लता में आज जो रस खिला,
वह केवल सौंदर्य नहीं, भक्ति का संपूर्ण विलय था।

