परम्परा
परम्परा
पारिवारिक हित में बनाये कुछ क़ानून नियमों का संकलन होता है,
जिसे घर के सभी सदस्यों द्वारा सादर -पूर्वक निभाया जाता है,
मर्यादा की नींव पर बने उन्हीं नियमों को परम्परा कहा जाता है,
पीढ़ी दर पीढ़ी इन्हीं परम्पराओं का यथावत निर्वाह होता है,
परदादा,दादा,पिता और पुत्र तक ये क्रम निर्विघ्न चलता रहता है।
परिवार में जो भी सदस्य इन नियमों का पालन नहीं करता है,
वो बागी,नालायक,विद्रोही एवं परिवार पर कलंक माना जाता है,
उसे धमका कर ज़मीन,जायदाद से बेदखल कर दिया जाता है,
भारतीय परिवार में परम्परा,प्रतिष्ठा अनुशासन का बोलबाला होता है,
परिवार के हित में परम्परा में कई बार नियमों का भी थोपा जाना है।
कई बार नियमों ने जाति,संस्कृति, धर्म का आवरण ओढ़ा होता है,
जिसका अंतरजातीय विवाह,संबंधों में पुरजोर विरोध होता है,
लिबास,घरेलू काम को ले महिलाओं में भी मतभेद,कलह होता है,
परम्परा परिवार को बाँधे रखती तो विपरीत प्रभाव भी पड़ता है,
परम्परा रूढ़िवादी हो तो पुश्तों को परिणाम भुगतना पड़ता है,
परम्पराएं अब समूल नष्ट हो रही बस दिखावे का दौर चल रहा है।