प्रलय की आती पदचाप
प्रलय की आती पदचाप
प्रकृति के पोषण-संरक्षण को यूं भुलाना,
पड़ जाएगा हमारे ही अस्तित्व पर भारी।
महसूस करें प्रलय की आती पद चाप को,
शोषण रोक-रक्षण की करें सार्थक तैयारी।
होता है भयंकर खतरों का ,
कुछ पूर्व संकेतों से आभास।
छठी इंद्रिय की सक्रियता,
कुछ कराती है यह अहसास।
एक-दो से न चल सकेगा काम,
मिलकर करनी है सामूहिक तैयारी।
प्रकृति के पोषण-संरक्षण को यूं भुलाना,
पड़ जाएगा हमारे ही अस्तित्व पर भारी।
महसूस करें प्रलय की आती पद चाप को,
शोषण रोक-रक्षण की करें सार्थक तैयारी।
सूखा-बाढ़ भूकम्प-सूनामी आदि से,
समय-समय पर प्रकृति हमको चेताती।
विविध आपदाएं छेड़छाड़ का फल हैं,
पर्वत- मैदान- सागर में कुप्रभाव दर्शाती।
जो जानकर हम अनजान बने जो रहेंगे,
तो कीमत हमें चुकानी पड़ेगी बड़ी भारी।
प्रकृति के पोषण-संरक्षण को यूं भुलाना,
पड़ जाएगा हमारे ही अस्तित्व पर भारी।
महसूस करें प्रलय की आती पद चाप को,
शोषण रोक-रक्षण की करें सार्थक तैयारी।
धरती का बढ़ रहा ताप
पिघलती है हिम आप।
विषैली वायु-नीर-धरा ,
प्रदूषित करते हम आप।
किसी और की नहीं ये,
बड़ी ही भूल है हमारी।
प्रकृति के पोषण-संरक्षण को यूं भुलाना,
पड़ जाएगा हमारे ही अस्तित्व पर भारी।
महसूस करें प्रलय की आती पद चाप को,
शोषण रोक-रक्षण की करें सार्थक तैयारी।
