प्रकृति माँ हमारी है
प्रकृति माँ हमारी है
प्रकृति फुसफुसा रही है,
कुछ कहना चाह रही है।
क्यूँ अनसुना करे है ?
तुझ को ही सुना रही है।।
नदियाँ कर रहीं क्रंदन,
घाट पड़े हैं निर्जन।
किसने विष घोला जल में,
मृत्यु को दिया निमंत्रण ?
दम घुटता है वायु का,
उफ़! कैसे तड़प रही है !
तुझ को क्या जीवन देगी,
उसपर खुद आन पड़ी है।।
न पेड़ बचे न हरियाली।
न चिड़ियों का कोलाहल।
तुम भी न बच पाओगे,
पीयोगे अगर हलाहल।।
समझो उनको चेतावनी,
जो आपदाएं आयीं।
अब भी अनसुना किये है,
जब जीवन पर बन आई?
इसको नाराज़ न करना,
प्रकृति माँ हमारी है।
पर्यावरण की रक्षा,
हमसब की ज़िम्मेदारी है।।