प्रियवर
प्रियवर
अन-बन हो जाती घर में
फिर भी साथ निभाते हैं ,
कभी तो लाल गुलाब हैं
कभी न समझ आए वो हिसाब हैं ,
हाँ मैं बात कर रही हूँ अपने पति देव की
छोटी -छोटी नोक -झोंक होती रहती
फिर भी साथ निभाते हैं
प्रियवर वो कहलाते हैं ,
हाँ प्रियवर वो कहलाते हैं।
रूठ जाए तो फिर मनाना है
कभी -कभी लगता है ,
अभी तक मैंने उनको नहीं जाना है।
चहरे पर हंसी नहीं आती है
कड़क है स्वभाव जिनका
प्रियवर वो कहलाते हैं ,
हाँ प्रियवर वो कहलाते हैं।
