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सोनी गुप्ता

Abstract

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सोनी गुप्ता

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प्रियवर

प्रियवर

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अन-बन हो जाती घर में

फिर भी साथ निभाते हैं ,

कभी तो लाल गुलाब हैं

कभी न समझ आए वो हिसाब हैं ,

हाँ मैं बात कर रही हूँ अपने पति देव की

छोटी -छोटी नोक -झोंक होती रहती

फिर भी साथ निभाते हैं

प्रियवर वो कहलाते हैं ,

हाँ प्रियवर वो कहलाते हैं।

रूठ जाए तो फिर मनाना है

कभी -कभी लगता है ,

अभी तक मैंने उनको नहीं जाना है।

चहरे पर हंसी नहीं आती है

कड़क है स्वभाव जिनका

प्रियवर वो कहलाते हैं ,

हाँ प्रियवर वो कहलाते हैं।



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