प्रीतम का छल
प्रीतम का छल
आधी रात को
बजा किवाड़
समझी कि आ
गये बालम हमार
उठ बैठी
चटपट
चपपट
चटपट
जिया करे
धक धक
धक धक
धक धक।
पता नहीं क्या
होगी आज ?
कुँडी गिराने में
लगती लाज
बोले किवाड़
खट खट
खट खट
खट खट
जिया करे
धक धक
धक धक
धक धक।
खोला किवाड़
खाली मिला द्वार
इधर उधर
देखा कई बार
देखा सभी ओर
झटपट
झटपट
झटपट
जिया करे
धक धक
धक धक
धक धक।
पता न आया
किधर से
चुमा किसी
ने पकड़ के
काँप उठा
यौवन सिहर के
निकला सईयां
नटखट
नटखट
नटखट
जिया करे
धक धक
धक धक
धक धक ।।

