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Er. Pashupati Nath Prasad

Tragedy

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Er. Pashupati Nath Prasad

Tragedy

फिर भी मैं पराई हूँ

फिर भी मैं पराई हूँ

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बचपन से सुनती आयी,

बेटी है पराया धन,

पति का घर है तेरा अपना,

सभी सुनाते यह कथन।


शादी हुयी पति घर आयी,

नहीं मिला यहाँ अपनापन,

धन दौलत की कमी नहीं है,

सब में दिखे परायापन।


बच्चे बड़े हुए आयी बहूयें,

फिर भी रहा अधूरापन,

माता-पिता सा अपनापन,

न दे पाया कोई जन।


पूर्ण जीवन संबंध निभाते,

माता-पिता, पति, संतान,

खाली खाली मन है रहता,

इनसे गर नहीं मान समान्न।


न अपनापन धन दौलत दे,

प्यार सेवा खुश करता मन,

भौतिक सुख धन दौलत देता,

प्यार सेवा से अपनापन।


जवानी, बुढापा, बचपन,

भोग चुकी ये तीनो पन,

बहुत कुछ मैं पायी हूँ,

फिर भी मैं पराई हूँ।


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