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Er. Pashupati Nath Prasad

Others

4  

Er. Pashupati Nath Prasad

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शून्य, एक और अनंत तथा तम‌‌‌ और आकाश

शून्य, एक और अनंत तथा तम‌‌‌ और आकाश

4 mins
350


शून्य, एक और अनंत

पूर्ण पूर्ण में दिया रहा फिर भी पूर्णांक,

पूर्ण पूर्ण से लिया रहा फिर भी पूर्णांक,

गुणा पूर्ण में किया पूर्ण फिर भी पूर्णांक,

पूर्ण विभाजित किया पूर्ण फिर भी पूर्णांक।

( अनंत + अनंत = अनंत, अनंत - अनंत = अनंत, 

अनंत × अनंत = अनंत, अनंत ÷ अनंत = अनंत )

( देखें संदर्भ 2 )

शून्य शून्य में दिया रहा फिर भी शून्यांक,

शून्य शून्य से लिया रहा फिर भी शून्यांक,

 गुणा शून्य में किया शून्य फिर भी शून्यांक,

 शून्य विभाजित किया शून्य आया पूर्णांक ।

( 0 + 0 = 0, 0 - 0 = 0, 0 × 0 = 0, 0 ÷ 0 = अनंत )

शून्य बिना एक रहता निष्फल, 

बिना एक शून्य फले नहीं फल,

शून्य आदि है, एक शुरू है,

अंत अनंत से ब्रह्म बद्ध है।

बंद वक्र पर सभी जगह से शून्य शुरू है,

वहीं पर है एक अनंत बन अंत है पाता,

अंक विद्या के सब गणित के जनक तीन ए,

इन तीनों से ही गणित को सीखा जाता ।

( देखें संदर्भ - 1 )

अगर शून्य रहता है किसी अंक के पीछे,

बढ़े जरा भी अंक नहीं रहता वह नीचे,

अगर शून्य आता है किसी अंक के आगे,

 10 गतांक में वृद्धि हो भाग्य उसका जागे ।

( जैसे - 01, 10, 100 वगैरह )

यह वृद्धि धीरे धीरे बनता अनंत,

 घटते घटते शून्य बने कहे सब संत,

 शून्य और अनंत नहीं दो इसको मानें,

 इन दोनों का दो उद्भव नहीं इसको जानें ।

( देखें संदर्भ - 1 )

तम

जहां कहीं प्रकाश रोको वहां तम आ जाता,

 क्या है इसका वेग बोल तू क्या है पाता ?

अवलोकन बतलाता इसका वेग शून्य, अनंत,

 इस कारण से प्रकट हो जाता कहीं तुरंत ।

( वेग = विस्थापन/ समय , अगर समय शून्य तब वेग अनंत यानी शून्य समय में कहीं भी।

अगर समय अनंत तब वेग शून्य यानी पूर्ण स्थिर )


इसका भौतिक गुण शून्य से है निरूपित, 

गति शून्य, आवृत्ति शून्य इसमें अपेक्षित,

 पांचवा मूल माप की परिभाषा देता तम,

 जिससे बद्ध यह वृहद प्रकृति चलती हरदम ।

 ( पांचवा मूल माप cycle )

 सब कहते हैं ब्रह्म रचता है भू को सब को,

तुम कहते हो तम रचता है ब्रह्म को सबको,

 तम क्या है यह प्रश्न हमारा ?

 कहो क्या प्रमाण तुम्हारा ?

बिना स्रोत नहीं भू पर बहता निर्मल निर्झर,

बिना स्रोत प्रकाश पूंज नहीं भू है पाती,

बिना स्रोत भू पर छाया बन जाती कैसे ?

अंत: कोई है स्रोत जहां से बनके आती ?

यह स्रोत अनंत बिंदु तम,

यह स्रोत शून्य बिंदु तम,

यह स्रोत है अंत बिंदु तम,

यह स्रोत है आदि बिंदु तम ।

शुभ्र दिन में जो नीला रंग दिखता ऊपर,

घोर निशा में जो काला छाता इस भू पर,

ज्योंहि दीप शिखा बुझता जो रंग है आता,

यही तम का भिन्न रूप इस भू पर छाता।

कहता वेद सभी है ऐसा,

मनुस्मृति साक्षी जैसा,

उपनिषद भी कहता यही,

फिर क्यों मानें ऐसा वैसा ।

( देखें संदर्भ )

आकाश

जनक यज्ञ में याज्ञवल्क्य से गार्गी ने पूछा-

 भू किससे आच्छादित है यह आप बताएं,

 भू है जल से,जल वायु से, 

वायु ऊपर नभ है आए, 

नभ ऊपर गंधर्व लोक है, 

सूर्य लोग इस ऊपर आए।

 इसके ऊपर चंद्रलोक है, 

नक्षत्र लोग इस ऊपर छाए,

 देवलोक इसके ऊपर है,

 इंद्रलोक इस ऊपर आए,

 प्रजापति लोक इसके ऊपर,

 ब्रह्मलोक सब ऊपर छाए,

 पुनः प्रश्न किया गार्गी ने 

इसके ऊपर पुनः बताएं ।

प्रश्न कठिन था, उत्तर शेष था,

ऋषि मन तब कुछ अकुलाया,

 आकुल मन तब क्रोध सृजन कर

 गार्गी को था चुप कराया ।

इसके आगे मैं बतलाता,

ब्रह्म के ऊपर तम है छाता,

तम के ऊपर क्या है आता,

सबसे ऊपर क्या है छाता।

 बंद वक्र पर चलो जहां से

 फिर कर आते पुनः वहां पे,

 ऐसा ही इस चक्र को जानें,

सबसे ऊपर तम को मानें ।

( देखें संदर्भ -1 )

 जो है सूक्ष्म जिससे जितना

 वह ऊपर रहता है उतना,

जो है स्थूल जिससे जितना

 वह नीचे रहता है उतना । 

वैज्ञानिक हाईगन का इथर 

भी लगता कुछ तम के ऐसा,

माइचेलसन-मोरले प्रयोग से 

सिद्ध नहीं हो पाता वैसा ।

मैं पाता प्रयोग गलत यह

 क्योंकि स्रोत है धारा ही पर,

नित्य बिंदु पाने के हेतु 

लें स्रोत किसी ग्रह के ऊपर ।

 विद्युत-चुंबकीय, गुरुत्वाकर्षण 

क्षेत्र द्वय आकाश बनाते,

इथर का अस्तित्व नहीं है,

अल्बर्ट आइंस्टीन यह बतलाते ।

 महाप्रलय के हो जाने पर

 नभ का पिंड खत्म होते सारे,

सूर्य चंद्र व ग्रह नक्षत्र सब 

खत्म हो जाते हैं सब तारे ।

तो भी क्या उपरोक्त क्षेत्र द्वय

 बच जाएंगे,

 उसके बाद आकाश कहां से

 बन पाएंगे।

 अतः तम है जनक सभी का,

 और सभी हैं दास इसी का,

स्वत: जन्म ले, स्वत: मरण ले,

मित्र अमित्र यह नहीं किसी का ।

 सभी जगह यह व्याप्त 

नहीं कोई जगह है खाली,

ग्रह, नक्षत्र, परमाणु हो 

अथवा रवि लाली ।

 भू, चंद्र हो अथवा कोई 

नभ का तारा,

यही अनंत का रूप 

जिसे है देखती धारा ।

स्वामी विवेकानंद कहते 

अनंत नहीं हो सकता दो-तीन,

अनंत एक है, एक ही रहता,

बीते चाहे कितना ही दिन। 


संदर्भ ( References ) :--

1.  कवर फ़ोटो देखें

2. पुर्णमिद्; पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।

   पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।

                  ( उपनिषद )

3. तम आसीत मस्वा गूढमम्रेअ्प्रकेतं संलिलं सर्वमा इदम।

तुभ्येनाम्व पिहितं यदासीतपरास्वनाहिवा जायतैकम ।।

( ऋग्वेद, अ.8,अ.7,व.17, ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका पेज 85, स्वामी दयानंद सरस्वती रचित )

3. आसीदिदं तमोभूतम प्रज्ञात्मललक्षणम्।

   अप्रतक्र्यमविज्ञेयम् प्रसुप्तामिम सर्वत:।।

( मनुस्मृति अध्याय 1, श्लोक 5 )

4. अनेकाबाहूदरवक्त्रनेत्रं

पश्यामि त्वां सर्वतोअ्नन्तरूपम्।

नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिं

पश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूपम।।

( गीता अध्याय 11, श्लोक 16 )

5. आर्यावर्त अखबार

( गार्गी याज्ञवल्क्य संवाद )

6. Ideas and opinions 

  ( Einstein Albert )

7. Paper on Hinduism Chicago Address by Swami Vivekananda ( pp-25 )



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