वसुधैव कुटुम्बकम
वसुधैव कुटुम्बकम
वसुधैव कुटुम्बकम का आदर्श,
जन जीवन में दे उत्कर्ष,
जो अपनाये हो महान,
बहुत सरल है इसका ज्ञान।
पूरा विश्व को अपना जाने,
नहीं किसी को वैरी माने,
सबको मदद करे हरदम,
दुख में सबका हो हमदम।
सुख पाने पे न इतराये,
दुख आने पे न घबराये,
सुख में दुख मे एक समान,
वसुधैव कुटुम्बकम का यह ज्ञान।
जिसे लोभ नहीं ललचाये,
क्रोध कामना पास न आये,
वासना मन को न भरमाये,
यह आदर्श वह निश्चित पाये।
धन को जो तृण सा जाने,
निर्धन धनी को एक सा माने,
प्रेम ही जिसका हो स्वभाव,
वहाँ न रहता है अभाव।
पूरा विश्व जिसका परिवार,
जाति धर्म की न दीवार,
न कोई झगड़ा, न तकरार,
वसुधैव कुटुम्बकम का हकदार।