परीलोक
परीलोक
मिली सहेली बोली चलो आज थोड़ा घूम आयें,
आओ तुम्हें आज हम अपने देश की सैर करायें,
हो कर स्तब्ध मैं बड़े गौर से सुन रही थी बातें,
अभी कुछ दिन पहले ही मिली थी कम ही है मुलाकातें..!
मेरी शंका जान उसने मुस्करा कर मेरी ओर देखा,
अरे घबराओ नहीं बताती हूं फिर नहीं रहेगी शंका,
लेकर आई कु़छ कपड़े बोली जाकर यह पहन लो,
फिर मेरे साथ यह पंख लगा कर मेरे देश को चलो..!
मैं हूं परियों की रानी सुनहरे पंखों वाली बड़ी सयानी,
तुमको ले चलूंगी वहॉं जिसकी तुमने सुनी होगी कहानी,
मुझको अपने साथ लेकर परीलोक की ओर उड़ चली,
रास्ते में मुझे पिघले सोने की बहती हुई इक नदी मिली ..!
उसका लोक बड़ा ही सुंदर रंग रंगीला जगमग जगमग,
चॉंद का बना झूला झूल रहे थे देख मुझे रुके एकाएक,
बड़े बड़े पहाड़ जिस पर चाकलेट था जमा हुआ ,
आईस क्रीम के इतने फ्लेवर का स्टॉक था भरा हुआ..!!
पेड़ों पर उगते थे बिस्कुट कैंडी और तरह तरह की टॉफियॉ
बात करती थी चिडियॉं और नाचती थीं धरती पर मछलियॉं
कोई कहीं भी दुखी नहीं था रोगों का तो पता ही नहीं था,
पेड़ पौधे भी लगे बोलने सितारे भी नृत्य गान करने लगे..!!
यह कैसा लोक था सुंदर परियॉं रहती थीं जहॉं पर,
ना कोई उलझन परेशानी ना कोई किसी में खोट था ,
सब थे खुश देता कोई किसी को ना चोट था ,
ऐसी खुशहाली धरती पर कब आयेगी ..!
यही सोच से मैं उसके संग घूम रही थी ,
मेरी दुविधा व सोच से वो अन्जान नहीं थी ,
बोली सबको खुश रखने का तुम सोच रही हो ,
ईष्या जलन द्वेष द्वन्द से तुम अन्जान नहीं हो ..!
धरती पर सुख तब आयेगा जब सबमें भाईचारा जागेगा,
थी तो बहुत पते की बात पर धरती पर यह युग कब आयेगा !
