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Akhtar Ali Shah

Drama

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Akhtar Ali Shah

Drama

परिचित कराता हूँ

परिचित कराता हूँ

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कविता

परिचित कराता हूँ

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मैं गायक दीन दुखियों का,

उन्हीं के गीत गाता हूँ।

मैं तुमको असली हिंदुस्तान से,

परिचित कराता हूँ।।

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अभावों में जो संतोषी, 

जलाकर आग बैठें हों। 

जो अपनी ठंड चूल्हे में,

जला बेदाग बैठें हो।।

खुशी के ले के जो

अपने लबों पे राग बैठे हो।

जो मेहनतकश हो,

सेहरा में लगाकर बाग बैठे हो।।

प्रशंसक हूं मैं उनका,

फन को उनके सिर झुकाता हूँ।

मैं तुमको असली हिंदुस्तान से, 

परिचित कराता हूँ।।

**

मिटाकर गम के तम को,

रोशनी में जो विचरते हैं।

हंसी का अपने जख्मों पर, 

लगा मरहम निखरते हैं।।

नहीं रखते हवेली से जलन, 

ना आहें भरते हैं।

खुदा से डरने वाले कब,

किसी से लोगों डरते हैं।।

जो साबीर हैं मैं उनके, 

सब्र पर कुर्बान जाता हूँ।

मैं तुमको असली हिंदुस्तान,

से परिचित कराता हूँ।।

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अख्तर अली शाह "अनंत" नीमच


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