प्रगति के अवरोधक तत्व
प्रगति के अवरोधक तत्व
मृत्युलोक में सब नश्वर है जाति नहीं नश्वर है
जाति नष्ट हो जाए तो यह धरा स्वर्ग से बढ़कर है
इसी के कारण वैर वैमनस्य दिल में दस्तक देता है
ऊँच-नीच के अंकुर उगकर वृक्ष रूप धर लेता है।
धर्म के ठेकेदारों की दूकान इसी के बल चलती है
कर्म-काण्ड की संरचना भी उसके संग संग चलती है
भारत का संविधान ताक पर रखा हुआ रह जाता है
लोकतंत्र के प्रगति-पंथ पर गतिरोधक आ जाता है।
मानवता के बीच सियासत नया रंग दिखलाती है
जाति-पाँति का संबल लेकर अपना काम बनाती है
शिक्षा का हथियार भी इसके सम्मुख कुंठित दिखता है
धर्म दीवार खड़ी करने में कोई कसर न रखता है।
जाति-जाति में प्रेम अगर दो दिल को जोड़ने आता है
सच कहता हूँ जातीयता उस प्रेम को भी खा जाता है
छूत-अछूत की घृणित भावना अगर कहीं पर दिखती है
मानवता के उजले मुख पर मानों कालिख मलती है।
भारत के दिल में देखो तो जाति की घृणित क्यारी है
ऊँच-नीच की विषम वेदना से ग्रसित नर-नारी है
धर्म के आरक्षण पर देखो जाति का गहरा पहरा है
ऐसे लोगों के कारण संविधान हमारा बहरा है।
-
मंदिर-मस्जिद में देखो आरक्षण जाति का भारी है
पंडित ,मुल्ला और मौलवी सबसे बड़े अधिकारी हैं
इनके फरमानों के आगे संविधान चुप हो जाता है
जातिवाद के कारण ही भारत पीछे रह जाता है।
जातियता की अमरबेल को आओ हम उखाड़ फेंके
और संवारें मानवता को जातिविहीन समाज देके
यही कामना हर मानव के दिल में हमें जगानी है
भारत को इस विश्व पटल पर नव पहचान बनानी है।
