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sandeeep kajale

Tragedy

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sandeeep kajale

Tragedy

परेशां सारी रात है

परेशां सारी रात है

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आसमान खामोश हो गया

लगता है, अपने में ही खोया,

जाने क्या बात है,

परेशां सारी रात है।


चाँद भी अपनी तनहाई में था

अँधेरी राहों की गहराई में था,

ये एक अजनबी साथ है,

परेशां सारी रात है।


दूरियों का चल रहा सिलसिला

किसी से भी न था कोई शिकवा न गिला,

गुमनाम गली में खाली हाथ है,

परेशां सारी रात है।


रो भी नहीं रही, ना हंसती है

ग़मों का डेरा, आसुओं की बस्ती है

फिर भी उम्मीद की दाद है,

परेशां सारी रात है।


ऐ, चमकते तारे, तुम तो सो जाओ,

नींद भरी आखों से सपनों, में खुद को पाओ

शायद आखिर ये याद है।

परेशां सारी रात है।




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