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प्रीति प्रभा

Abstract

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प्रीति प्रभा

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प्रेम

प्रेम

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202

कहीं पर डाका कहीं पर चोरी है

यहांँ बस प्यार की तिजोरी है


कोई लाठी नहीं यहांँ उठाता

हाथ में प्रेम की कटोरी है


बोल नफ़रत की ना कोई बोले

तुम जो सुनते हो वो मांँ की लोरी है


लूटने वाले तुम आना जब जी करे

हिसाब की किताब यहांँ कोरी है


इक बार आओगे तो बंध जाओगे

प्रेम की बड़ी अटूट डोरी है.


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