प्रेम.....
प्रेम.....
सुना किस्से कहानियों में,
तो देखा फिल्मों की दुनिया में,
प्रेम अनुभूति है एहसास है,
आत्मा का आत्मा से मिलन है,
खूबसूरत सा बंधन है,
पर हकीकत में प्रेम..
त्याग समर्पण की भावना है,
स्वार्थ से परे है,
दिल से जुड़ता और मरते दम तक निभाया जाता है,
रूप रंग पैसा सब उसके आगे फीके हैं
क्योंकि जो पैसों से तोला जाता है वो सौदा है,
प्रेम तो सच्चे मन से किया जाता है,
जो विश्वास की नींव को सींचते हुए आगे बढ़ता है,
और प्यारे से उपवन की भांति हर कोने को महकाता है,
प्रेम का अर्थ ख्यालों में खोए रहना,
हर वक्त उसके बारे में सोचना,
उसके लिए खुद को बदलना नहीं,
वरन् दूर रहकर भी उसके दिल के पास रहना है,
दिखावे से दूर दिल से जुड़े रहना है,
यूं तो हर किसी के लिए कोई न कोई कहीं न कहीं होता है,
पर जो संजोग से मिला दिल से जुड़ जाता है,
वो प्रेम हर किसी को नहीं मिलता,
क्योंकि...,
प्रेम में मीरा सी भक्ति है,
सीता सा त्याग है,
रूक्मिणी सा इंतजार है,
राधा सा अटूट विश्वास है।