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Kusum Lakhera

Romance Fantasy Inspirational

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Kusum Lakhera

Romance Fantasy Inspirational

प्रेम

प्रेम

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प्रेम का पुष्प !

हृदय में खिलता है

सच्चा प्रेम तो

भावों में मिलता है

फिर देह का उठता


कहाँ सवाल ?

प्रेम यूँ ही नहीं

जिस किसी से

किया जाए व्यक्त !

ये मनोभाव है

जो बड़ी मुश्किल

से हो अभिव्यक्त !


प्रेम वह नहीं

जो देह से किया जाए !

वह तो लौकिक

श्रृंगार कहलाए !

जो देह के पिंजरे

में खोजे प्रेम

की अनुभूति !


वह कैसे अन्तर्मन

की प्यास बुझाए ?

प्रेम नहीं मदिरा

या कोई जाम 

ये तो जहर को भी

अमृत बनाए !


इसके लिए मीरा

सा समर्पित भाव

को करना होगा

आत्मसात

अगर प्रेम के सत्य

रूप को है जानना


तो देह को नहीँ

स्वयं के भीतर

आत्मतत्व को

पहचानना

जो भीतर है

उज्ज्वल आत्मा

उससे पूछना कि

क्या है प्रेम ?


कहाँ है प्रेम ?

उत्तर जरूर मिलेगा

तुम्हारे स्वयं के भीतर

ही है वह आनन्द का

सागर बस तुम

सुनते कहाँ हो ?

तुम देखते कहाँ हो ?

तुम बस भटकते रहते हो !

दिशाहीन


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