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Meera Kannaujiya

Romance

4  

Meera Kannaujiya

Romance

"प्रेम!"

"प्रेम!"

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प्रेम कहूँ या परमेश्वर कहूँ तुझे,

प्यार में तेरा नाम छिपा!

तू प्यार है,तू प्यार में,तू प्यार से,

जगत की उत्पत्ति से अब तक तू प्यार ही प्यार कर रहा!


जिसे पहचानना है ख़ुदा को,

पहले ख़ुद को प्रेम से भर लो,

वो प्रेम में है शामिल,

पहले उससे प्रेम कर लो!


जगत का प्रेम क्षणिक है,

क्यों तब इसमें डूबते हो!

प्रेम के प्यासे तुम, प्रेम को यहाँ-वहाँ ढूढ़ते हो।

ज़रा गौर करो इस प्रकृति पर

जो प्रेम की दीवानी है,

डूबना है तो उसके प्रेम में डूबो!

जिसने तुम्हारे लिए दी क़ुर्बानी है।


हे प्रेमी ख़ुदा! तुझसे प्रेम करने वाले कैसे प्रेममय हो जाते हैं;

लबालब भर के तेरे प्रेम में,सराबोर हो जाते हैं।

प्यार का सोता उनमें उमड़ता है,

जो नदी की तरह न जानें कहाँ-कहाँ पहुँचता है;

जो उसमें से पीता है वो भी नदियाँ प्रेम की बहाता है,

न जानें कितनी प्रेमलय नदियाँ तुझसे निकलती हैं,

जो मिल के एक महान सागर बनती हैं।



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