Neelam Sharma

Romance

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Neelam Sharma

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प्रेम प्रणय

प्रेम प्रणय

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इन प्रफुल्लित प्राण-पुष्पों में

मुझे शाश्वत शरण दो प्रिय।

मरुस्थल को सु-उरस्थल बनाकर

सदानीरा तरण दो प्रिय।

बह रही पुरवा सुहानी,

घोलती है गंध को। 


घोल कर फिर गंध को ये,

बाँधती मधु बंध को। 

बंध कोई जुड़ गया जब,

आस अन्तस् में जगे। 

आस में डूबे सभी दिन,

साथ प्रिय के ही पगे। 


मृदु छुअन की कामना हुई

सु-प्रणय प्रीति अराधना।

प्रेम उर मन्दिर बसे पिया,

हुई पूरी नीलम साधना॥



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