प्रेम कथा
प्रेम कथा
ये है एक शाम की बात
उस समय हो रही थी खूब बरसात
तारे भी आसमां में टीम टिमा रहे थे
पैड पौधे भी गुन गुना रहे थे पंछी भी चह चहा रहे थे
डूबते सूरज के किनारे इंद्रधनुष भी बल खा रहा था
धरती पर भी प्रेम उमड़ा जा रहा था।
उमड़ते प्रेम में हम भी गोते खा रहे थे
वो भी हमे देख कर शर्मा रहे थे। धीरे धीरे प्रकाश ढलने लगा
हमारे दिल में भी हल चल बढ़ने लगा
रात में दिखा टूटता तारा तो हमने भी पूछ लिया क्या मतलब था जो उन्होंने किया था इशारा
होले होले बीत गई रात फिर सुबह दिखे तो करने लगे आंखो ही आंखो मे बात
मानो पूछ रहे हो कब होगी सात जन्मों की पहली मुलाकात।
हमने अपना मुंह मोड़ लिया ऐसा एहसास हुआ जैसे उनका दिल तोड दिया।
वो आगे चलने लगे बनकर नवाब इतने में गिर गई उनके हाथ से किताब।
उन्होंने किया हुआ था कविता पर सुंदर काम
परंतु क्यू दिख रहा था कविता की अंतिम पंक्ति में हमारा नाम
उनको जानने की हुए जिज्ञासा जगने लगी
हमरी दिल की एक अनजानी से डोर उनके दिल में फसने लगी।

