प्रेम की पीड़ा
प्रेम की पीड़ा
नज़्मों की बूंद बरसती है,
ग़ज़ल की बारिश बन जाए..!
सरगम की धुन जो बजती है,
कोई राग सुरीला बन जाए..!
कोई कली झांकती है कोंपल से,
फूल जो बनकर खिल जाए..!
कल कल बहती नदी की धारा,
सागर से जा कर मिल जाए..!
मेरे आँखों से छलका पानी,
जो दर्द से तेरे मिल जाए...!
प्रेम की पीड़ा से उपजा,
एक नन्हा आँसू बन जाए...!
विरह की वेदना अनुपम,
मधुर मुस्कान बन जाये..!
हृदय की संवेदना सुन लो,
प्रिये, मुमकिन हर बात बन जाये..!