पीले फूल पलाश के
पीले फूल पलाश के
वो जाते - जाते लगा गया ,
पीले फूल पलाश के
कोई नहीं था रोने वाला ,
उसके अंतिम क्षणो में ,
वो अभागा वो बेचारा ,
त्रस्त था अपने इस जन्म में।
वो जाते - जाते लगा गया ,
पीले फूल पलाश के।
बचपन आया ज़वानी आई ,
मगर उस पर कभी बहार ना आई ,
माँ गई फिर गए पिता ,
रह गया वो अकेला यहाँ।
वो जाते - जाते लगा गया ,
पीले फूल पलाश के।
उसने फिर भी कभी हार ना मानी ,
और प्रकृति को दी अपनी निशानी ,
अपने मरने से दो दिन पहले ,
उसने दिया नए पौध को पानी।
वो जाते - जाते लगा गया ,
पीले फूल पलाश के।
उस दिन कोई नहीं रोया ,
जिस दिन उसका अंत हुआ ,
मगर रोये वो दो फूल ,
जिनका उस के हाथों से जन्म हुआ।
वो जाते - जाते लगा गया ,
पीले फूल पलाश के।
मैं आज भी पानी देती हूँ ,
प्रकृति की उस रचना को ,
वो अब दो नहीं सौ हैं ,
जो महकाते उस बगिया को।
वो जाते - जाते लगा गया ,
पीले फूल पलाश के।
हम सब पंचतत्व से निर्मित ,
हमें इस मिट्टी में ही मिल जाना है ,
बस जाते - जाते इस मिट्टी में ,
पलाश के पीले फूलों को उगाना है ||
