मेरे दोस्त !
मेरे दोस्त !
ज़िंदा हूँ, साँसें अब भी चल रही हैं मेरे दोस्त,
थकी-थकी सी शाम, ढल रही है मेरे दोस्त !
बुलबुल ने साथ छोड़ दिया सूखे गुलों का,
कि रुत बहार की निकल रही है मेरे दोस्त !
महफिल में कौन देख सका शमा के आँसू,
परवाने से पहले वो जल रही है मेरे दोस्त !
अहसास होगा अपनी ख़ता का कभी तुम्हें,
रूह इस खयाल से, बहल रही है मेरे दोस्त !
बहला रहे हैं दिल को गलतफहमियों से हम,
कैसी बुरी आदत ये पल रही है मेरे दोस्त !
दिन में पचास रंग बदलता रहा सूरज,
धरती भी रंग अब, बदल रही है मेरे दोस्त !
दिल के उसी कोने को जरा छू के देखना,
धड़कन वहाँ मेरी मचल रही है मेरे दोस्त !

