थक जाती हूँ मैं बहुत
थक जाती हूँ मैं बहुत
थक जाती हूँ मैं बहुत,
लेकिन ये बताने के लिए कोई है नहीं
किसे कहूँ
हर शख्स दो चेहरे लिए घूम रहा है।
जब दिल हार जाता है तो रो लेती हूँ
थक जाती हूँ मैं बहुत,
तो पुराने दिनों को सोच लेती हूँ
लगता है कि जी ली है जिंदगी बहुत
अब सुकून से सो लेती हूँ।
थक जाती हूँ मैं बहुत,
नौ घंटे की नौकरी और
चंद रुपयों में क्यों सिमटी है ये जिंदगी मेरी,
सोच कर भी सोचने का मन नहीं करता।
अब किसी को कुछ कहने का
दिल नहीं करता
थक जाती हूँ मैं बहुत,
लेकिन फिर भी हिम्मत समेट कर
रोज निकलती हूँ घर से दफ्तर।
पहचान मैंने मेरे काम से ही बनाई है
इसे ही थाम कर अब
फिर से खड़ी हो रही हूँ।
थकता वही है जो जिम्मेदार है
जो है समझदार
इसलिए जब थक जाती हूँ बहुत
तो खुद को समेटकर फिर से चल देती हूँ...।।
