STORYMIRROR

Seema Pandya

Abstract

4  

Seema Pandya

Abstract

प्रेम की गंगा

प्रेम की गंगा

1 min
301


ज़माने की सोच जैसे को तैसा,नहले पे दहेला,

जिंदगी की इस रेस मे, तू नही मैं पहला।


मै जीता तू हारा,तेरा एक तो मेरा दस;

और यूं ही जिंदगी तमाम हो जायेगी बस।


छोड़ो, मिटा दो वार पे वार का ये सिलसिला,

हार जीत का , तू तू मैं मैं का ये जलजला।


बहा दो प्रेम की गंगा,बिखेर दो प्यार का फवारा।

बना दो जीवन जन्नत सा,और बना दो मौसम प्यारा।

 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract