मां कीर्ति
मां कीर्ति
नौ महीने अपनी कोख में पनाह दे कर,
पाला पोसा जीवन दिया दुनिया दिखाकर।
नन्हे नन्हे पैरों को जान दी, चलना सीखाकर;
नाजुक नाजुक हाथों को बल दिया, अमृत पिलाकर।
नन्हीसी जानको विराट बनाया, अपना खून सिचकर;
ममताकी छांवमें मुझे सवारा, स्नेह दुलार देकर।
मां तूने सिखाया प्यार जीवनमे, मिठास घोलकर;
दुखमे भी सुखका एहसास करना, साहस देकर।
संस्कारका सिंचन किया, धर्म की परिभाषा बनकर;
सचकी रह पर चलना सिखाया, ज्योति बनकर।
मां से छोटा कोई शब्द हो तो बताओ;
मां से बड़ा कोई अर्थ हो तो बताओ।
जन्नत है तेरी पावन गोद में मां कीर्ति;
कोटि कोटि प्रणाम है चरणों में मां कीर्ति।