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Seema Pandya

Abstract

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Seema Pandya

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डर मुझे भी लगता है

डर मुझे भी लगता है

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डर हर किसी को लगता है,

किसी को काम का, किसी को ऊंचाई का,

किसी को पानी का, किसी को आग का। 

   

किसी को इम्तिहान में, ना कामयाबी का, 

मंजिल को खोने का, गुमराह होने का।

डर मुझे भी लगता है

डर लगता है इस बात से कि


कहीं आधुनिक युग में इंसान मशीन ना बन जाए,

दिल कहीं पत्थर का ना हो जाए,

कामयाबी की इस दौड़ में,

इंसानियत ना खो जाए।


भाईचारा, प्यार, मोहब्बत

बाजार में नीलाम ना हो जाए,

कोई किसी का शिकार ना हो जाए।

डर मुझे भी लगता है।


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