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Dr Javaid Tahir

Romance

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Dr Javaid Tahir

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परदा

परदा

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मिली है आशिक़ी मे परदा -दारी क्या करूं

धड़कन को दिल से है परदा -दारी क्या करूं


दर्द को चाहिये एक ज़ख्म सलीके का

और मुझपे है तेरी परदा -दारी क्या करूं


था जलाना तो तेरी तासीर ऐ इश्क़

आग को मेरे दिल से हे परदा -दारी क्या करूं


मैं था कभी पत्थर और तू अक़ीदे से भरा

तुझे अब बुत परस़ती से परदा- दारी क्या करूं


मांगता हूं कब नमाज़ों मे लौहे क़लम

तुझको मेरी इबादत से परदा -दारी क्या करूं


देख मैख़ाने यहां के हैं बरक़त से भरे

तुझको साक़ी से परदा -दारी क्या करूं


ना दे तू दस़त ऐ शिफ़ा अपने आंगन के फूलों को

रंगो को मुझसे हे परदा -दारी क्या करूं


ये क्या दिन है हटता नहीं चेहरे से नक़ाब

ले हो गयी दुनिया से परदा -दारी क्या करूं


तेरी ऑंखों की ज़न्नत से तो बेहतर ये नहीं

फ़िरदौस में हूरों से परदा -दारी क्या करूं


फिर चलो जावेद अब ज़िस्म है रूह से जुदा

ग़ैर के हैं वो अब और तुम से परदा -दारी क्या करूं





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