परदा
परदा
मिली है आशिक़ी मे परदा -दारी क्या करूं
धड़कन को दिल से है परदा -दारी क्या करूं
दर्द को चाहिये एक ज़ख्म सलीके का
और मुझपे है तेरी परदा -दारी क्या करूं
था जलाना तो तेरी तासीर ऐ इश्क़
आग को मेरे दिल से हे परदा -दारी क्या करूं
मैं था कभी पत्थर और तू अक़ीदे से भरा
तुझे अब बुत परस़ती से परदा- दारी क्या करूं
मांगता हूं कब नमाज़ों मे लौहे क़लम
तुझको मेरी इबादत से परदा -दारी क्या करूं
देख मैख़ाने यहां के हैं बरक़त से भरे
तुझको साक़ी से परदा -दारी क्या करूं
ना दे तू दस़त ऐ शिफ़ा अपने आंगन के फूलों को
रंगो को मुझसे हे परदा -दारी क्या करूं
ये क्या दिन है हटता नहीं चेहरे से नक़ाब
ले हो गयी दुनिया से परदा -दारी क्या करूं
तेरी ऑंखों की ज़न्नत से तो बेहतर ये नहीं
फ़िरदौस में हूरों से परदा -दारी क्या करूं
फिर चलो जावेद अब ज़िस्म है रूह से जुदा
ग़ैर के हैं वो अब और तुम से परदा -दारी क्या करूं

