परछाईं तेरी
परछाईं तेरी


मेरे अतीत से मेरे आज तक की परछाईं में
तू आ ही जाता है मिलने मुझसे तन्हाई में
है दूर लेकिन ज़रा भी दूर नहीं, तू साथ है
रात की करवटों और सुबह की अंगड़ाई में
सरे बाजार बनाता है क्यों तमाशा मेरा
जाने क्या मिलता है तुझे मेरी रुसवाई में
पहचान लेते हैं महफ़िल में दोस्त सारे
हरसू तू मेरे अल्फ़ाज़ों में मेरी लिखाई में