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Pragya Mishra

Drama Inspirational

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Pragya Mishra

Drama Inspirational

परास्त

परास्त

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इस शाम रुको तुम आज यहीं,

मुझको कुछ बात बतानी है,

हद दिखालाने वालों को,

हर रोज़ मुँह की खानी है,

मैं पीछे-पीछे क्यों ताकूँ ?

क्यों मुँह झेंपू बगले झाँकू ?


अब तीर कमान तो रहे नहीं,

तलवार कलम की चलानी है,

हद दिखलाने वालों को,

हर रोज़ मुँह की खानी है।


तुम कह दो और मैं रुक जाऊँ ?

बस अँध कूप में मूक जाऊँ ?

होगी फिसलन दीवारों पर,

मेंढक की मौत न आनी है,

हद दिखलाने वालों को,

हर रोज़ मुँह की खानी है।


क्यों कन्धे मेरे झुके रहें ?

बस नत मस्तक से टिके रहें !

उठ कर अंगड़ाई ले लूँ मैं,

तो क्यों तुमको हैरानी है ?


तुम ठान लो, तो दृढ़ चित्त !

मेरी हठ मनमानी है ?

हद दिखलाने वालों को,

हर रोज़ मुँह की खानी है।


क्यों डिग्री करना बहुत हुआ ?

क्यों आगे पढ़ना व्यर्थ हुआ ?

क्यों लम्बे कद की उसको,

लड़का मिलना परेशानी है ?

कद जतलाने वालों को,

हर रोज़ मुँह की खानी है।


खानदान का खयाल रहे,

औरत हो तुम लिहाज़ रहे !

ये सब काम नहीं करते,

इस जात में ऐसे होता है,

साड़ियाँ सजाओ खिलता है,

चूड़ियाँ बजाओ चलता है !


और किताबें संग,

औरत का बौद्धिक विकास,

जिस समाज में खलता है,

नहीं वहाँ कभी कोई,

बुद्धिजीवी फलता है।


लोक लाज की गठरी धर,

जड़ होना नादानी है,

खुद की बुलन्द करो प्रज्ञा,

होने दो जिसकी हानी है।


है बुध्दि का साथ अगर,

तो देश काल हर परिस्थिति,

में जीत तुम्हारी होनी है !

जिनको जो कहना कहने दो,

उनको ही भ्रम में रहने दो,

सपनों को आँच दिखानी है !


"दे ताप झोंक कर कुंदन कर,

अब मत हटना पीछे डरकर",

कमर सीधी कन्धे तन कर,

हाँ कहने दो अभिमानी है।


जगह जगह के जालों को,

उनकी जगह दिखानी है,

हद दिखलाने वालों को,

उनकी हद बतलानी है।


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