जीवन तुम इत्मीनान धरो
जीवन तुम इत्मीनान धरो
जीवन तुम इत्मीनान धरो
निज चेष्टा भर काम करो
कर्म उचित तभी होगा
जो सम्बन्धों में धैर्य धरो
रिश्ते भी सहलाने हैं
सैर सपाटे जाया करो
जीवन तुम इत्मीनान धरो।
प्रेम नहीं बैंक की एफ डी
बस डाल दिया फिर लाभ लिया
ये तिनका तिनका गुल्लक है
हर रोज़ ही तुमने सिंचित किया।
उस संचय का रसपान करो
जीवन तुम इत्मीनान धरो।
मैं विभोर मैं कितना कौतुक
अब हाथ कमर इठलाता हूँ
वहीं खड़ा मन की रेलिंग पर
उंगली पे गिनता जाता हूँ
हैं जितने पेड़ पहाड़ों पर
उतनी अंगड़ाई रोज़ भरो
जीवन तुम इत्मीनान धरो।।
