प्राण वायु, हवा
प्राण वायु, हवा


मैं प्राण वायु हूँ, मैं हवा हूँ,
सबको जीवन देता ,मुफ़्त की दवा हूँ।
पर अब मैं शुष्क और बेजान हो गया हूँ,
अब पहले जैसी मुझमें बात कहाँ।
उजड़ चुकी है फूलों की ओ बगिया,
जहाँ से मैं ख़ुशबू चुराया करता था।
कट गए हैं, ओ पेड़ सारे,
जिसके छांव में मैं थकान मिटाता था।
भटकता हूँ गर्म धूप के थपेड़ों से बचने के लिए,
यहाँ-वहाँ और ना जाने कहाँ-कहाँ।
अब तो हर पल तड़प रहा हूँ,
हाँ ,मैं प्
राण वायु हूँ , मैं हवा हूँ
सबको जीवन देता ,मुफ़्त की दवा हूँ
ज़हरीली गैसों का घुसपैठ इस क़दर हो गया,
मेरे ही अंदर , अब तो मेरा भी दम घुटने लगा है।
आज़ाद मुल्क है, लोग आज़ाद हैं,
पर मैं बंद बोतलों में अब क़ैद सा हो गया हूँ।
कोई अदालत मेरे लिए भी बनवा दो,
जहाँ मेरी बेगुनाही की पैरवी मैं ख़ुद कर सकूँ।
मैं बेगुनाह हूँ,
हाँ ,मैं प्राण वायु हूँ ,मैं हवा हूँ
सबको जीवन देता, मुफ़्त की दवा हूँ।।