पराई
पराई
अपना घर छोड़कर मैं
किसी और के घर आई हूं।
मेरे घर वाले ही कहते हैं कि,
मैं उनके लिए पराई हूं।
आखिर ये रिश्तों का खेल ही क्यों ?
मां-बाप अपनी गोद में खिलाए।
फिर कोई अजनबी आकर,
जिम्मेदारियां का नाम बनाएं।
परवरिश मां-बाप करें और
बड़ी भी परछाई में होती है।
उनके लिए करने का वक्त आए
तो वो रिवाजों से पराई होती है।
एक जीवन साथी के खातिर
घर ही नहीं नाम तक बदल गया
जो घर को रोशन करना चाहती थी
उसका ही सूरज ढ़ल गया।
साथी भी सही नहीं मिला तो,
मुड़कर वापस आती नहीं।
हंसते हुए गम सहती है पर,
अपना हाल किसी को बताती नहीं।
यह घर भी दूसरे का है और,
वह घर भी दूसरे की अमानत है।
गम में भी चेहरा तो देखो जरा,
किस तरह हंसी में सलामत है।