पंचतत्व
पंचतत्व
पंचतत्व का है बना मनु मानव का यह देह।
मिट्टी में मिल जायगा, छोड़ कर सारा नेह।।
संकोच ना करना कभी कहने से अपनों से।
कि कोई दूर ना रहे अपने सुंदर सपनों से।।
सब जीवों में श्रेष्ठ है,मिला यह मानव रूप।
ईश्वर ने हमें दिया, एक सा अलग स्वरुप।।
हमको मिलता है सदा, उनका अनुपम प्रेम।
प्रभु की आराधना में है सच्चा सुख व चैन।।
अपने नश्वर तन पर, करते हैं जो अभिमान।
अज्ञानी हैँ वो नासमझ जो बनते हैं नादान।।
मोह माया से सब दूर रहें, जैसे रहें हों विदेह।
सदकर्म सुफल होता सदा इसमें नहीं संदेह।।