पलकों में बंद करो
पलकों में बंद करो
कुछ तो प्रभु से डरो, नेक नीयत से काम करो,
निर्धन को धन देकर, हो सके दर्द पर जन हरो।
आना जाना हर इंसान को है, घमंड फिर कैसा,
ख्याति इस जहां में अर्जित करके ही, तुम मरो।।
अच्छे बुरे नजारे होते, बुरे नजारों को भूल जाना,
अच्छे नजारे पलकों में बंद करो, मिलेगा सहारा।
कभी बुरा देखो तो उसे भूल जाने की आदत हो,
महात्मा गांधी ने यहीं कहा है,जो फर्ज है हमारा।
पलकों में बंद करो, धर्म कर्म के सभी ही नजारें,
पाप कर्म को भूल जा, नहीं होते वो पास हमारे।
कल्पना कर लो, जहां भी होता है बड़ा ही सुंदर,
अहित बुराई छोड़ दो, हित एवं भला करो प्यारे।।
पलकों में बंद करो, प्रकृति के सभी सुंदर नजारे,
नहीं दिल दुखाओ उनका,जो आते हैं द्वार तुम्हारे।
नहीं रह पाया है कोई धरती पर, सदा ही अमर,
दूर तक अंबर तले ही सजे हुये, सुंदर ही नजारे।
पलकों में बंद करो,हकीकत में जो हाते हैं काम,
हकीकत पर जो चलता, उसका होता सदा नाम।
कितने आये चले गये, पर रहते, धरा पे चंद नाम,
अपने तन को पवित्र कर लो, बना दो एक धाम।
पलकों में बंद करो, कैसे धरा पर गंगा को लाया,
सगर अंशुमान चले गये, भागीरथ ने जन्म पाया।
लीक से हटकर काम किया, उसने नाम कमाया,
वो धरती से मिट गया,जिसने जन दिल दुखाया।
पलकों में बंद करो, वो बचपन की सभी यादे,
कभी रोते कभी हँसते, कभी करते थे फरियादें।
शान शौकत से जीते थे,नहीं होता था कोई डर,
इसलिये हम बच्चे, कहलाते थे यूं ही शहजादे।।
पलकों में बंद कर लो,राजा हरिश्चंद्र का नजारा,
कभी झूठ न बोला, था वो सच का बड़ा प्यारा।
सच के लिए जान भी दे देते हैं, वो पाते हैं नाम,
जो सच पर ही चलते हैं, उन्हें मिले प्रभु सहारा।।