पक्की दोस्ती
पक्की दोस्ती
चलो कुछ बात छेड़े अपने दोस्ती की,
क्या दिन से वे अपने स्कूल की मस्ती के,
आज भी याद आती है उनके दिनों की नमी की
फिर भी सताने मे कभी कोई कसर ना कमी की
क्या गजब के दिन वे, यारीयों की यारी भी
शाम की पानी की पार्टी भी बड़ी प्यारी थी
ना घमंड भा, ना रुतबा और ना पैसा था
इसलिए शायद सभी के दिल मे मोहब्बत एक जैसी थी।
याद हम सभी को आती वो घडी भी जब दोस्तों के लिये
हमारे हाथ और शिक्षक की छड़ी थी।
साथ में खाना साथ में पिना क्या
पार्यवरण भी हमारी दोस्ती का दिवाना था,
हस्त किताब में पड़ी आज भी वो यादे हैं,
भगवान से सिर्फ यही फरियाद है,
काश वे दिन वापस आ जाते।
एक हि प्लेट में सभी खाना खाते क्या मौल,
क्या मस्ती जवानी थी, मनुष्य तो छोडो,
पर्यावरण भी हमारी दोस्ती का दिवाना था