बारिश की बूंदें
बारिश की बूंदें
बादल से बिछड़कर
रुनझुन बरसती
बारिश की नन्हीं बूंदें
नव तरु पल्लव पर
ठहरती-फिसलती हुई
समा जाती हैं
धरती की छाती में
और करती है तृप्त
उसके तप्त दग्ध हृदय को
फिर तृप्त हृदय से
फूटता है प्रेमांकुर
और झूम उठती है प्रकृति
अपने नवरूप पर...