पिता
पिता
पिता छत्र है जीवन का,
संरक्षक है प्यारे बचपन का।
धरता धीरज है धरती सा,
और आसमान सी निश्छलता।।
देेेख अठखेलियाँ शैशव की,
मधुरम् मधुरम् मुस्काता है ।
जितना उसका सामर्थ्य नहीं ,
उससे ज्यादा कर जाता है ।।
प्रेम अगाध भरी गागर,
पर कभी नहीं दिखलाता है।
अपने कटु-मधुु वचनों से,
शिशु अंतर्मन सहलाता है ।।
सृृृजन करे और पालन भी,
फिर भी याचन करता है ।
हे पिता तुम बड़े महान,
तुम ही हमारे भरता हो।।
ध्यान धरें जब ईश्वर का,
सूूूरत तेरी ही दिखती है ।
तेेेरे ही आलिंगन में,
दुनिया मेरी सिमटी है ।।
निःस्वार्थ भावना की प्रतिमा,
हर ज़िद वो पूरी करता है ।
पिता है नाम समर्पण का,
तारक है प्यारे बचपन का।।