पिता
पिता


सुना है, एक माँ उसी समय जन्म लेती है,
जब उसकी कोख में इक बच्चा आता है,
नही समझ पाता पिता उन धड़कनों को,
लेकिन-–
जिस पल वो अपने लाडले/ लाडली को ,
गोद मे उठाता है.
धड़क जाता है उसका दिल,
उस नन्हे को समीप ला,
हां! ठीक उसी पल वो---
पिता बन जाता है.
नन्ही उंगलियां, नन्हे -नन्हे पांव,
दूध धुली मुस्कान, उसका अंश.
खुशी-खुशी वो अपनी,
जिम्मेदारियों को निभाता है
हर लेती है सारी थकान,
बच्चों की नन्ही फरमाइशें,
वो दुगने जोश से, काम मे लग जाता है.
जानता है कि उसकी लाडली को,
चले जाना है पराए घर,
सो अपना प्यार कुछ अधिक,
ब
ेटियों पर लुटाता है,
कितना भी कोई दलीलें दे,
पक्षपात की---
बेटी के लिए पिता,
सुरक्षा की चट्टान बन जाता है,
बेटे के लिए भी उसका प्यार अनोखा है,
जनता है, आएगी देर सबेर,
जिम्मेदारियां पुत्र पर भी,एक पत्नी की,
बहन की और उसकी खुद की संतानों की,
सिर्फ इसीलिए शायद थोड़ा,
सख्ती से पेश आता है.
खुद पर पक्षपाती का
ठप्पा लगवाता है,
और जब समझ जाता है,
बेटा हो गया जिम्मेदारी उठाने लायक
चैन की चंद अंतिम सांसे ले पाता है.
कर के सारी दौलत पुत्र के नाम,
सख्त होने का पितृ ऋण चुकाता है,
हर बेटी के और हर बेटे के भी,
दुलारे पिता----