पिता राज दुलारा
पिता राज दुलारा


पिता दिवस हर घर रोज अब मनाया क्योंं नहीं जाता।
आज ही रस्म अदायगी पिता रोज याद क्योंं नहीं आता।
कर रहा बड़ाई पिता की हर कोई यहा बहुत मगर।
प्रतिदिन सर पिता चरणों सबका झुक क्यों नहीं पाता।
भूखा प्यासा या कोई आशा है पिता कोई देखता नहीं।
व्यस्त जिंदगी से लौट हाल पिता क्योंं नहीं पूछ पाता।
बचपन हमारे सहारे थे गिरने हमे दौड़ उठाते थे वो।
तन्हा उदास लाचार पिता सहारा बन क्यों नहीं जाता।
फास्ट लाइफ विद वाइफ पिता हो गए अब साइड।
वृद्धाश्रम से पिता वापस घर लाया क्यों नहीं जाता।
भूखे बेटे खिलाता था पिता अपने हाथो बड़े प्यार से।
बीमार वृद्ध पिता खुद पुत्र निवाले क्यों नही खिलाता।
तुम्हारी हर जरूरत पर हो जाता था खड़ा चट्टान जैसा।
बेजान लड़खड़ाते पिता कदमों जान डाल क्यों नहीं जाता।
हो जाता था हाजिर तेरी एक आवाज सब छोड़कर।
इंतजार तेरे बोल तू पिता राज दुलारा बन क्यों नहीं जाता।