पिता : कर्ज चुकाएगा, पर बच्चों को पढ़ाएगा !!
पिता : कर्ज चुकाएगा, पर बच्चों को पढ़ाएगा !!
उम्मीदें भी सहम जाती है,
चिंता सताये ही जाती है,
दर्द क्या होता पूछो उस बाप से,
जिसकी कमाई कर्जा चुकाने में जाती है !
भागी भागी ज़िन्दगी में,
भागता ही रह जाता है,
कर्जे के नीचे दबकर,
वो सुकून कँहा पाता है !
बच्चो की फ़रमाहिसे भी,
आसमान जितनी होती है,
पर उनको भी पूरा करना,
पिता की चाहत होती है !
कर्ज़े का सितम ,
पैसे वाले कँहा समझते है ?
जब बच्चो को अपने सपने,
बड़े नहीं महंगे लगने लगते है !
रात रात भर जिनकी,
मोहब्बत नहीं मेहनत जागती है,
कर्जदार की संतान है,
ऐसे ही हार थोड़े ही मानती है !
परिणाम से पहले,
पत्र प्रमाण का,
लोग लिए बैठे है!!
छोटी मोती नौकरी करले,
ये प्लान बताये बैठे है !
गिरना उठना उठकर गिरना,
उठने की लग्न भी जारी है,
उम्मीदें ही ज़िंदा रखती,
दुनिया जीतनी अब सारी है !
सपनो में परिया नहीं,
रिजल्ट हमारा आता है,
धुंधला सा दिखकर ओझल होता,
न जाने क्या बतलाता है!!
मन तो उस बच्चे का भी,
ख़्वाहिस पूरी करने का करता है,
किस्मत थोड़ी दगेबाज़ है साहब,
बच्चा "कर्जदार" होने से डरता है !
वक़्त ही तो ये बदलना है,
मुस्कान चेहरे पर लानी है,
पापा को सारी खुशियाँ,
सोने की अंगूठी मम्मी को पहनानी है !
सपने हर बच्चे के पुरे हो,
शिक्षा अब व्यापार न बने,
एक ख्वाहिश है "हेमंत" की,
किसी बच्चे का पिता, कर्जदार न बने !