पीड़ा देश की
पीड़ा देश की
धरती माता की पीड़ा- अकथनीय- अतिरेक।
आर्यावर्त भू खण्ड संकुचन! भारतीय चेत।।
पचहत्तरवें वर्ष में प्रवेश, विश्व-गुरु बन देख।
वंदे मातरम् अंगिभूत कर दासता भाव फेंक।।
दिवनिशि धरती माँ रे! अश्रुपूरित- व्यथित है।
मानव मन क्लांत, म्लान- अतिशय छुब्द है।।
मन भयाक्रांत- कोरोना फण ताने- फुफकार रहा है।
दंश पीड़ा असह्य- "तमसा्" से मन-तन बिषाक्त है।।
शंख-प्रत्यंचा सिथिल- वीर मौन- रणभूमि रिक्त है।
तरुण-युवागण- प्रौढ़- वृद्व स्वप्नलोक में व्यस्त हैं।।
कलियुग व्याप्त चहूँ दिसी- प्रगाढ़ निंद्रा में सब लिप्त है।
चरैवेति! चरैवेति!! शंखनाद हो- पार्थ-सारथी संग है।।
हर नारी में दुर्गा अवसान, मौन - शोणित पर विनम्र है।
कौन (?) वीर भला करेगा आकर धर्म रक्षा की भरपाई,
जन-साधारण दग्ध, त्रस्त- अवसान अति विज्ञिप्त है।।
अवतरण अवश्यंभावी है पुनः शिव-कृष्ण का
आहत सतियाँ आत्मदाह को आज प्रस्तुत है।
ध्रिणा-द्वेष-प्रतिशोध-लोभ-काम-अनुरक्ति की,
ज्वाला अतिउग्र, भावी महाविनाश प्रचण्ड है।।
आर्तनाद् गुँजायमान- धराधाम पर व्याप्त तमसा है।
धरा-जल-नभ प्राणवायु हीन (!) तम् परिलक्षित है।।
पथ अतिदुस्तर - कंटकाजीर्ण भयावह- विकट है।
थम जायेगी लखयुगों से चलायमान् धरा धुरी पर,
रवि रथ-चक्र ओजहीन तमस से व्यथित- बाधित है।।
मौन व्योम सौर्य मण्डल- नक्षत्र- सप्त ऋषि तारिकायें,
शुभ लक्षण ब्राह्म महूरत में लख अरुणिमा हुई प्रकट है।
शंखनाद गुँजायमान, मत कह बँधु! ''धरा विचलित'' है।।
'नभ्य मानवतावादियों' की फौज कुरुक्षेत्र में प्रस्तुत है।।।
