"पीड़ा"
"पीड़ा"
कैसे कहूं तो से गुंइया,
हमार पिया मानत नैइया।
सब के घर-घर मोटर लगी है।
सबकी बाखर खूब सजी है।
मैं कां से भर लाऊं पनिया,
हमार पिया-----
सबके घर में होवें किसानी।
सगै जावै जेठ जिठानी।
मोहे वे ले जात नइया,
हमार पिया-----
रात-दिना में कह-कह कै हारी।
जरदा फांकें खावे सुपारी।
घर में तो नोन चून नैइया,
हमार पिया------
