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Renuka Chugh Middha

Tragedy

3  

Renuka Chugh Middha

Tragedy

फटी जेब

फटी जेब

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फटी जेब है ,गिर गये है सारे रिश्ते, इन्सानित बिक गई वहशीपन के बाज़ार में,

विक्षिप्त समाज के विक्षिप्त लोग लाज-शर्म घोल कर पी गये इस ससांर में ,


विरोध करने वालो का ताताँ लगा हुआ है, ग़ुस्सा उबल रहा है हर आँख में

बहुसंख्यक हैं लोग विरोध करने वाले , 

फ़ेसबुक पर , बाज़ारों और गलियों में ।


घटित होती है जब कोई घटना , 

ज़ोर -शोर से हर गली- गलियारा गूँजता है , 

हम सब एक हो खड़े उन वहशीयों के जंगलीपन के विरोध में,

हाँ हम विरोधी है .... सब इस शर्मनाक हादसे के।


सारा देश इक-जुट हो तब होता है खड़ा 

हर बहू - बेटी के मान की ख़ातिर , 

बस बातों मे , बस कुछ किताबों में ,दिवारों -पोस्टर के चुभते नारों में , 

क़ानून लँगड़ा ,अन्धा और बहरा हो जाता है , मन्त्री , सन्तरी ,नेता सब आँखें मूँदे राजनैतिक रोटियाँ सेकतें रहते हैं , 

पड़ जाती है ठण्डी कुछ दिन बाद

ये उफनता क्रोध ,मन में धधकती ज्वाला।


जब शांत हो जाता है माहौल तो , 

फुस्स हो जाती है सबके बदले की लौ,

अन्दर की फड़फड़ाती आग तो , 

कोर्ट- कचहरियों के चक्कर में ,

शर्म - बदनामी के चक्रव्यूह में ,

फिर दम तोड़ जाती है ...

कोई बहू-बेटी,माँ,

फिर से दरिदगीं का तांडव खेला जाता है , 

फिर से हैवानियत नाम बदल कर सामने आती है , 

डर से , खुद की बहन बेटी के ख्याल भर से, 

फिर ग़ुस्से की चिंगारी भड़क उठती है। 


सोचा है कभी पूरे देश के आगे कुछ मुठ्ठी-भर दरिंदे कैसे टिक पाते है ? 


कैसे कुछ थोड़े कुंठित मानसिकता वाले हर बार बच जाते है ? 

कहाँ से , क्यूँ फिर से हैवानियत जन्म है लेती ? 

हर बार नारी के साथ ही ऐसा क्यूँ ?

सृजन-शक्ति का ही हर बार अपमान क्यूँ ? 

क्या पुरूष के साथ ऐसा हुआ है ?

माना जिसको रक्षक ,

कभी उसका बलात्कार हुआ है ? 

हममें , तुममें यहीं आस-पास की भीड़ में ही सभ्य मुखोटे लगा कर छुपे हैं, 

बिमार मानसिकता , घटिया ,ज़लालत से भरी पाशविक सोच से भरे हैं। 

निर्भया ओर प्रियंका जैसी मासूम आत्माएँ आर्तनाद कर रही हैं आसमान में, 

नपुंसक क़ानून और समाज को झिंझोड़कर कर जगाना होगा , 

प्रताड़ना का प्रतिघात कर , दरिंदगी के कीचड़ को मिटाना होगा। 

वहशियाना खेल को बन्द करने को , हाथ-पैर,आँख-नाक सरेआम कटवाने होगें , 

डाल गले में फंदा सरेआम फाँसी पर लटकाने होंगे । 

इन नामर्दों को उनके वहशीपन की दरिन्दगी के कठोर सबक़ सिखाने होंगे? 


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