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Rajni Sharma

Tragedy

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Rajni Sharma

Tragedy

फरियाद

फरियाद

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छोटा सी महकी हुयी कली 

सीथी सादगी बाबुल की गुडिया 

जो बुलबुल सी चहकती थी।


क्या थी मै, कहा आ गयी 

जैसे कागज की कश्ती 

समन्दर मे खो गयी।


चाहा था बस, एक छोटा सा घर

जिसमे मेरे साजन का 

सच्चा प्यार और विश्वास हो।


सिन्दूर से सजाऊ सूनी माग को 

जब मै रूठू तो मनाए वो, 

अपने गले से प्यार से लगाए वो।


ख्वाब थे मेरे, जो शीशे की तरह चूर हुए

जाने कब बिखरे सब 

और हम उनसे दूर हुए।


जाने कैसे मुझसे, ये खता हो गयी

जिन्दगी कुछ यू सजा हो गयी 

जिस पर रोयी बहुत कलम वो शब्द बन गयी।


टूट कर रोयी बहुत, पर समझा न कोई 

मुझपर हुए इतने सितम 

कि मेरी फरयाद मुझ पर ही रोयी।


मुझ जैसी कोई, सुहागन न हो 

ऐसी कोई अभागन न हो

जो बनके दुल्हन बेहया बन गयी।


जिन्दगी मेरी, सजा बन गयी

जो पा न सकी मन्जिल 

वो बदनुमा रास्ता बन गयी।


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