पहरेदार
पहरेदार
अभी रात बाकी है
सपने अधूरे हैं
मिट्टी की बोरियों से बने इस
‘बंकर’ के अंदर मैं अकेला खड़ा हूँ
तुम्हारी खुशियों की ख़ातिर
अकेला जगा हूँ।
बाहर बर्फ का महा सागर फैला पड़ा है
कहीं कुछ चिनार के पेड़ नंगे खड़े हैं
हर कहीं भयानक सन्नाटा छाया हुआ है
लगता, कि मौत भी यहाँ खौफ से चुपचाप छिपी है ।
इस अँधेरी रात में, ठंडी बर्फ में
सीना तान मैं चुपचाप खड़ा हूँ
क्या पता आगे कोई दुश्मन
मेरी ताक में, मौके की तलाश में
बंदूक ताने, छिपा बैठा हुआ है।
कहीं दूर गाँव में मेरी प्यारी प्रिया ने
बच्चों को पापा के आने के सपने दिखाकर
अबतक सुलाया ही होगा,
आसमान में अनगिनत तारे
टिमटिमा रहे हैं
पर उनसे कैसे कहूँ,
मैं यहाँ अकेला खड़ा हूँ ?
तुम्हारी खुशियों की खातिर
अकेला जगा हूँ।
अगले महीने बहन की शादी है
घर आने का वादा निभाना ही होगा
हो सकता है तिरंगे में लिपट कर आऊँ
तुम्हारे मांग का सिंदूर मिटाकर आऊँ।
फिर हर चौराहे पर मेरी तस्वीर होगी
हर गली में भारत माँ की जयकार होगी
हर व्यक्ति को मुझपर अभिमान होगा
पर प्रिए , तुम्हारी आँखें भरी रहेगी ।
प्रिय
अभी रात बाकी है
सपने अधूरे हैं ,
मिट्टी की बोरियों से बने इस
‘बंकर’ के अंदर मैं अकेला खड़ा हूँ
तुम्हारी खुशियों की ख़ातिर
अकेला जगा हूँ ।